Saturday 5 November 2016

"जेल-डायरी" तिहाड़ से काबुल-कंधार तक : शेर सिंह राणा

"जेल-डायरी" तिहाड़ से काबुल-कंधार तक : शेर सिंह राणा
समशेर सिंह राणा उर्फ़ पंकज सिंह (जन्म:17 मई 1976) डकैत से सांसद बनी फूलन देवी की हत्या की थी। शेर सिंह राणा का जन्म 17 मई 1976 को उत्तराखंड के रुड़की में हुआ था


हार्परकॉलिन्स पब्लिशर्स इंडिया ए जोइंट वेन्चर विद दी इंडिया टुडे, नई दिल्ली द्वारा प्रकाशित फूलन देवी हत्याकांड में आरोपी तिहाड़ जेल में बंद शेरसिंह राणा की “जेल-डायरी” तिहाड़ से काबुल कंधार तक पढ़ी| पुस्तक में शेरसिंह राणा के बचपन, विद्यार्थी जीवन के बारे में उसी की जबानी क्रमबद्ध वर्णन तो है ही साथ ही उसके प्रेम कहानी का भी वर्णन किया गया है|


शेरसिंह राणा के फूलन हत्याकांड के आरोप में तिहाड़ पहुंचने और तिहाड़ में उसके जेल जीवन के संस्मरण पुरे विवरण के साथ दर्शाये गए है| राणा द्वारा पुस्तक के माध्यम से तिहाड़ में अपने जेल जीवन पर डाला गया प्रकाश तिहाड़ की कार्यप्रणाली व वहां के वातावरण को समझने में काफी है| अपने बचपन के जूनून व इच्छा कि –“वह अफगानिस्तान में अंतिम हिन्दू सम्राट पृथ्वीराज की समाधि खोदकर आदर-पूर्वक भारत लायेगा” और इस कार्य को पुरा करने के लिए उसे तिहाड़ से फरार होना आवश्यक था जिसके लिए अपनी जेल-डायरी में शेरसिंह राणा ने देश की सबसे सुरक्षित समझी जाने वाले जेल की सुरक्षा व्यवस्था को कैसे आसानी से ठेंगा दिखाकर तोड़ तिहाड़ से फरार हो गया, का विस्तार से वर्णन किया है| जिसे पढ़ने के बाद सरकार के सुरक्षा दावों की पोल ही नहीं खुल जाती बल्कि तिहाड़ जेल की सुरक्षा प्रणाली पर भी अच्छा ख़ासा प्रकाश पड़ जाता है|


जेल से फरार होने बाद शेरसिंह देश में कहाँ कहाँ गया? अफगानिस्तान जाकर अंतिम हिंदू सम्राट पृथ्वीराज की समाधि खोदकर उसकी आस्तियां लाने के लिए कैसे उसने अपना दूसरे नाम से जाली पासपोर्ट बनवाया ? कैसे वह अपने अफगानिस्तान मिशन को पूरा करने के लिए बांगलदेश गया ? वहां फर्जी कागजातों के आधार पर एक विश्विद्यालय में दाखिला लिया| फिर भारत से अफगानिस्तान का वीजा लेकर दुबई के रास्ते अफगानिस्तान गया| और वहां काबुल,कंधार और कई शहरों की ख़ाक छानता हुआ आखिर उसी जगह पहुँच गया जहाँ मुहम्मद गौरी व पृथ्वीराज की समाधियां बनी थी| उस तालिबानी गढ़ में जहाँ इंसानी जिंदगी पल भर में छीन ली जाती है, पृथ्वीराज की समाधि खोद लेना और उसकी मिट्टी भारत ले आना| साथ ही अपने इस पुरे ऑपरेशन की वीडियो रिकार्डिंग भी करना ताकि लोग उसके दावे को झूंठा नहीं कह सके| पुरे विवरण के साथ क्रमबद्ध तरीके से हर एक छोटी बात के साथ लिखी गयी है|


अफगानिस्तान जैसे देश में एक भारतीय हिंदू जो वहां की भाषा नहीं समझता, वहां का भूगोल नहीं समझता जाकर कई दिन रहना और सम्राट पृथ्वीराज की समाधि खोदना कोई कम दुस्साहस वाला कार्य नहीं| ऐसा कार्य एक वीर, साहसी और अपने समाज और उसकी सामाजिक प्रतिष्ठा के लिए मर मिटने का जूनून रखने वाला व्यक्ति ही कर सकता है| ऐसा कार्य वही कर सकता है जिसे अपनी जान की कतई परवाह नहीं| जो अपनी जान हथेली पर रखता हो| और शेरसिंह राणा ने अपने बचपन का यह सपना, जूनून कि वह सम्राट पृथ्वीराज की समाधि खोदकर भारत जरुर लायेगा जिसका अफगानिस्तान में अनादर किया जाता है| अपने साहस, बहादुरी व निडरता के साथ पुरा किया| शेरसिंह राणा की आत्म-कथा के रूप में प्रकाशित यह “जेल-डायरी” पुस्तक पढ़ने के बाद और उसके द्वारा तिहाड़ जेल जैसी अति-सुरक्षित जेल तोड़ कर अफगानिस्तान जाकर वहां सम्राट पृथ्वीराज की समाधि खोदने के कार्य की वीडियो रिकार्डिंग देखने के बाद शेरसिंह राणा के मन में सामाजिक प्रतिष्ठा के लिए मर मिटने का जूनून, उसकी निर्भीकता और उसके साहस का परिचय होता है|

इस पुस्तक को पढ़ने के बाद सिर्फ शेरसिंह राणा के साहस और निडरता पर ही प्रकाश नहीं पड़ता बल्कि एक और खास मुद्दे पर भी प्रकाश पड़ता है जो हमारे देश में नौकरशाहों की कार्य-प्रणाली, भ्रष्टाचार व सरकार द्वारा सुरक्षा के नाम पर किये जाने वाले लंबे चौड़े दावों की पोल खोलता है|

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