सालासर बालाजी : जब भक्त के आग्रह पर पधारे हनुमान
अतुलितबलधामं हेमशैलाभदेहं
दनुजवनकृशानुं ज्ञानिनामग्रगण्यम् |
सकलगुणनिधानं वानराणामधीशं
रघुपतिप्रियभक्तं वातजातं नमामि।।
रघुपतिप्रियभक्तं वातजातं नमामि।।
मरुधरा राजस्थान के चूरू जिले में स्थित है राम के प्रिय भक्त और ज्ञानियों में अग्रगण्य महाबली हनुमान का सिद्ध मंदिर। धर्मयात्रा की इस कड़ी में हम आपको लेकर चल रहे हैं
सालासर बालाजी के नाम से प्रसिद्ध इस मंदिर की स्थापना मोहनदास महाराज ने विक्रम संवत 1811 में श्रावण शुक्ल नवमी को की थी। ऐसी मान्यता है कि मोहनदासजी भक्ति से प्रसन्न होकर हनुमानजी आसोटा में मूर्ति रूपमें प्रकट हुए और अपने भक्त की मनोकामना पूर्ण की। तत्पश्चात मूर्ति की सालासर में प्राण प्रतिष्ठा हुई। संवत 1811 (सन 1754) से ही मंदिर परिसर में जहां मोहनदास जी का धूना था, अखंड ज्योति जल रही है। मंदिर परिसर में ही मोहनदास जी की समाधि है। बहन कान्हीबाई के पुत्र और अपने शिष्य उदयराम को मंदिर की जिम्मेदारी सौंपकर वैशाख शुक्ल त्रयोदशी को मोहनदास जी ने जीवित समाधि ली थी। यहां वह बैलगाड़ी भी है जिससे हनुमानजी की मूर्ति आसोटा से लाई गई थी। शेखावाटी की सुजानगढ़ में तहसील में स्थित यह मंदिर हनुमान भक्तों की आस्था का केन्द्र है। यहां दूर-दूर से श्रद्धानलु अपनी मनोकामनाएं लेकर आते हैं। यहां मनोकामना की पूर्ति के लिए नारियल बांधे जाते हैं, जिनकी संख्या लाखों में बताई जाती है। प्रमुख उत्सव : सालालर बालाजी का प्राकट्य दिवस श्रावण शुक्ल नवमी यहां बड़े धूमधाम से मनाया जाता है। साथ ही पितृपक्ष में मोहनदासजी का श्राद्ध दिवस त्रयोदशी को मनाया जाता है। बालाजी की इस प्रतिमा का रूप बहुत ही आकर्षक और प्रभावशली है. मंदिर (salasar balaji) के अंदर एक प्राचीन कुण्ड है जहाँ श्रद्धालु स्नान करते है. कहा जाता है इस कुण्ड का जल आरोग्यवर्धक है जो भी श्रद्धालु इसमें स्नान करता है वह अपने सभी रोगो से मुक्ति पता है. सालसार के इस मंदिर के स्थापित होने के समय से ही यहाँ एक अखंड दीप प्र्वज्लित है. बालाजी के इस मंदिर (salasar balaji) से लगभग एक किलोमीटर की दुरी पर माँ अंजना का बहुत ही भव्य मंदिर भी स्थित है.
सालसार मंदिर(salasar balaji) के संस्थापक मोहनदास जी की बचपन से ही हनुमान जी के प्रति अत्यंत श्रद्धा थी. उन्हें हनुमान जी की यह प्रतिमा हल जोतते समय जमीन के अन्दर से मिली थी. आज भी मोहनदास के वंशज इस मंदिर में परम्परागत रूप से बालाजी को दैनिक भोग लगाते है व सुबह शाम उनकी पूजा करते है. देश-विदेश से यहाँ भक्त आते है .मंगलवार और शनिवार को यहाँ श्रधलुओ की अधिक भीड़ होती है . यहाँ हर वर्ष भाद्रपद, आश्विन, चैत्र एवं वैशाख की पूर्णिमा के दिन बहुत ही विशाल मेले का आयोजन किया जाता है !
अतुलितबलधामं हेमशैलाभदेहं
दनुजवनकृशानुं ज्ञानिनामग्रगण्यम् |
सकलगुणनिधानं वानराणामधीशं
रघुपतिप्रियभक्तं वातजातं नमामि।।
रघुपतिप्रियभक्तं वातजातं नमामि।।
मरुधरा राजस्थान के चूरू जिले में स्थित है राम के प्रिय भक्त और ज्ञानियों में अग्रगण्य महाबली हनुमान का सिद्ध मंदिर। धर्मयात्रा की इस कड़ी में हम आपको लेकर चल रहे हैं
सालासर बालाजी के नाम से प्रसिद्ध इस मंदिर की स्थापना मोहनदास महाराज ने विक्रम संवत 1811 में श्रावण शुक्ल नवमी को की थी। ऐसी मान्यता है कि मोहनदासजी भक्ति से प्रसन्न होकर हनुमानजी आसोटा में मूर्ति रूपमें प्रकट हुए और अपने भक्त की मनोकामना पूर्ण की। तत्पश्चात मूर्ति की सालासर में प्राण प्रतिष्ठा हुई। संवत 1811 (सन 1754) से ही मंदिर परिसर में जहां मोहनदास जी का धूना था, अखंड ज्योति जल रही है। मंदिर परिसर में ही मोहनदास जी की समाधि है। बहन कान्हीबाई के पुत्र और अपने शिष्य उदयराम को मंदिर की जिम्मेदारी सौंपकर वैशाख शुक्ल त्रयोदशी को मोहनदास जी ने जीवित समाधि ली थी। यहां वह बैलगाड़ी भी है जिससे हनुमानजी की मूर्ति आसोटा से लाई गई थी। शेखावाटी की सुजानगढ़ में तहसील में स्थित यह मंदिर हनुमान भक्तों की आस्था का केन्द्र है। यहां दूर-दूर से श्रद्धानलु अपनी मनोकामनाएं लेकर आते हैं। यहां मनोकामना की पूर्ति के लिए नारियल बांधे जाते हैं, जिनकी संख्या लाखों में बताई जाती है। प्रमुख उत्सव : सालालर बालाजी का प्राकट्य दिवस श्रावण शुक्ल नवमी यहां बड़े धूमधाम से मनाया जाता है। साथ ही पितृपक्ष में मोहनदासजी का श्राद्ध दिवस त्रयोदशी को मनाया जाता है। बालाजी की इस प्रतिमा का रूप बहुत ही आकर्षक और प्रभावशली है. मंदिर (salasar balaji) के अंदर एक प्राचीन कुण्ड है जहाँ श्रद्धालु स्नान करते है. कहा जाता है इस कुण्ड का जल आरोग्यवर्धक है जो भी श्रद्धालु इसमें स्नान करता है वह अपने सभी रोगो से मुक्ति पता है. सालसार के इस मंदिर के स्थापित होने के समय से ही यहाँ एक अखंड दीप प्र्वज्लित है. बालाजी के इस मंदिर (salasar balaji) से लगभग एक किलोमीटर की दुरी पर माँ अंजना का बहुत ही भव्य मंदिर भी स्थित है.
सालसार मंदिर(salasar balaji) के संस्थापक मोहनदास जी की बचपन से ही हनुमान जी के प्रति अत्यंत श्रद्धा थी. उन्हें हनुमान जी की यह प्रतिमा हल जोतते समय जमीन के अन्दर से मिली थी. आज भी मोहनदास के वंशज इस मंदिर में परम्परागत रूप से बालाजी को दैनिक भोग लगाते है व सुबह शाम उनकी पूजा करते है. देश-विदेश से यहाँ भक्त आते है .मंगलवार और शनिवार को यहाँ श्रधलुओ की अधिक भीड़ होती है . यहाँ हर वर्ष भाद्रपद, आश्विन, चैत्र एवं वैशाख की पूर्णिमा के दिन बहुत ही विशाल मेले का आयोजन किया जाता है !
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